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गुरुवार, मार्च 15, 2018

ये इसी समाज के दृश्य है :
१. चार सरकारी कर्मचारी बेटों की माँ है वे , उम्र उन्हें उस पड़ाव पर ले आई है कि आँखों से दिखना लगभग बंद हो गया है और जिन लाडलों के लिए उन्होंने न जाने कितनी रोटियां बनाई होगी, वे ही सपूत ? उनकी दो वक्त की रोटी के लिए नंबर लगाते हैं - 'भैया एक महिना कल हो जायेगा माँ को मेरे पास , आप आओगे लेने या मैं ही छोड़ दूँ.' ये तो तब है जबकि उनके स्वर्गीय पति की पेंशन उनके मासिक खर्च से पांच गुना ज्यादा आती है और उसे वो ही बेटा लेता है जिसके पास वो उस महीने रहती है. पर हद तो तब हो गयी जब उनका ज्येष्ठ पुत्र एक दिन जब किसी अंतिम संस्कार में शामिल होकर आया तो माँ से कहा - " आप भी निबट जाओ जल्दी तो हम फ्री हो जाएँ !"  अपनी व्यथा सुनते हुए उनका गला रुंध गया. और मुझे लगा , मेरा सिर फट जायेगा. इतना अपमान , इतनी अभद्रता और विडंबना देखिये कि इस रिटायर्ड पुत्र ने जीवन भर शिक्षा देने का ही काम किया है. सत्यानाश ! क्या शिक्षा इसने दी होगी और अपने इन नीच विचारों को कितने मनों में भर दिया होगा, सोच कर ही कलेजा मुहं को आता है. उनसे मिल कर लौटते समय ख़ुशी इतनी ही थी कि वे भी खुश हुयी थी मुझसे मिलकर और बार बार मिल जाने के लिए कह रही थी.   

      

शुक्रवार, अगस्त 12, 2016

 स्वामी विवेकानंद की दो पश्चिमी मुलाकातें
जर्मनी के प्रसिद्ध भारतविद मैक्समूलर स्वामी विवेकानंद से अपनी मुलाकात से पूर्व ही श्री रामकृष्ण देव के नाम से परिचय पा चुके थे. भारत से प्राप्त सूचनाओं और सामग्री के आधार पर उन्होंने ‘ एक सच्चा महात्मा’ नामक लेख भी श्री रामकृष्ण देव पर लिखा था. स्वामी विवेकानंद की इंग्लैंड यात्रा के दौरान मैक्समूलर जो उस समय ऑक्सफ़ोर्ड में प्रोफेसर थे, ने स्वामी जी को भोजन का निमंत्रण दिया और व्यग्रता से उनकी प्रतीक्षा करने लगे.  नियत समय पर जब स्वामी विवेकानंद उनसे मिलने पहुंचे तो वृद्ध और विद्वान प्रोफ़ेसर से मिलकर अत्यंत आनंदित हुए. श्री रामकृष्ण का प्रसंग उठने पर उन्होंने कहा , “ प्रोफेसर ! आज हजारों लोग श्री रामकृष्ण की पूजा कर रहें है .” तो मैक्समूलर ने उत्तर दिया, “ यदि लोग ऐसे व्यक्ति की पूजा नहीं करेंगे तो और किसकी करेंगे. “  बाद में स्वामी विवेकानंद ने अपनी इस मुलाकात के बारे में बताया कि यह भेंट उनके लिए बड़ी ही ज्ञानवर्धक थी. सत्तर वर्ष की आयु में भी वे स्थिर, प्रसन्न मुख, बालकों सा कोमल ललाट, श्वेत चमकते केश, ऋषि के समान अंतर में गंभीर आध्यात्मिक निधि को संजोये मैक्समूलर और वैसी ही उनकी पत्नी, जैसे उन्हें अरुंधती और वशिष्ठ आदि ऋषियों के गौरवशाली युग में ले गए.
मैक्समूलर का भारतप्रेम देखकर स्वामी विवेकानंद अभिभूत हो उठे. उन्होंने पूछा , “ आप भारत कब आ रहें है ? भारतवर्षियों  के पूर्वजों की चिंतन राशी को आपने यथार्थ रूप में लोगों के सामने रखा है, अत: वहां का प्रत्येक हृदय आपका स्वागत करेगा.” तब भाव विभोर होकर जर्मनी में जन्मे उस प्राचीन भारतीय ऋषि ने कहा, “ तब तो मैं वापस नहीं आ पाऊंगा; आप लोगों को मेरा दाह संस्कार वहीँ कर देना होगा.”  तब स्वामी जी ने इस विषय को वहीं विराम देना उचित समझा.
मैक्समूलर ने स्वामीजी से पूछा, “ विश्व को श्री रामकृष्ण से परिचित करने के लिए आप लोग क्या कर रहे हैं ?”  और जब स्वामी जी विदा होने लगे तो मैक्स्मूलर उन्हें छोड़ने रेलवे स्टेशन तक आये. जब स्वामीजी ने इतना कष्ट करने पर आपत्ति जताई, तो मैक्समूलर का कहना था , “ श्री रामकृष्ण के एक शिष्य के साथ हमारी भेंट प्रतिदिन तो नहीं होती.”   
प्रसिद्ध अज्ञेयवादी रोबर्ट इंगरसोल के साथ स्वामी विवेकानंद की कई मुलाकातें हुयी. वयोवृद्ध इंगरसोल ने इस उत्साही युवक को सलाह देते हुए कहा कि यहाँ के लोग धर्म के मामले में अति असहिष्णु है, अत: अपने विचार व्यक्त करने ज्यादा साहस न दिखाएँ. तत्पश्चात वे बोले, “ यदि चालीस वर्ष पूर्व आप यहाँ आते तो या तो आपको फांसी पर चढ़ा दिया जाता या जिन्दा जला दिया जाता.” स्वामी विवेकानंद यह सुनकर विस्मित तो हुए पर शायद रोबर्ट इंगरसोल इस बात से परिचित नहीं थे कि इस युवा संन्यासी की विचारधारा में किसी धर्म के प्रति अपमान का भाव नहीं वरन सभी के प्रति सम्मान का ही भाव था.  एक वार्तालाप के दौरान इंगरसोल ने स्वामी जी से कहा, ‘ मेरा विचार है कि इस जगत से जितना संभव हो लाभ उठाने का प्रयत्न करना चाहिए. संतरे को पूरी तरह निचोड़कर जितना रस निकल सके निकल लेना चाहिए.” विदित हो कि इंगरसोल ईश्वर, आत्मा, परलोक आदि को कोरी कल्पना मानकर इनमे बिलकुल भी विश्वास नहीं करते थे. तब स्वामीजी ने कहा, “ इस जगत रुपी संतरे को निचोड़ने की मैं आपसे कहीं अधिक उत्कृष्ट प्रणाली जानता हूँ और मैं उसमे रस भी अधिक पाता हूँ. मैं जानता हूँ कि मेरी मृत्यु नहीं है, अत: मुझे रस निचोड़ने की जल्दबाजी नहीं है, मेरे लिए भय का कोई कारण नहीं है, अत: आनंदपूर्वक निचोड़ता हूँ. मेरा कोई कर्तव्य नहीं, मुझे स्त्री , पुत्र , संपत्ति आदि का कोई बंधन नहीं, इसलिए मै सभी नर-नारियों से प्रेम कर सकता हूँ, सभी मेरे लिए ब्रह्म स्वरुप है. मनुष्य को भगवान समझ कर उसके प्रति प्रेम रखने में कितना आनंद है. संतरे को इस प्रकार निचोड़ कर देखिये और उसमे एक बूँद भी न बचेगा.”
विख्यात अज्ञेयवादी इंगरसोल ने स्वामी विवेकानंद से कहा कि “ कृपया मुझ पर नाराज न हो, क्योंकि मैं  स्वयं भी प्राचीन रूढ़ियों के विरुद्ध ही संघर्ष करता आया हूँ और इस प्रकार मैंने अमेरिका में आपके लिए ही पथ प्रशस्त किया है. “


        

बुधवार, मई 01, 2013

 
जगत के कष्ट
तुम्हें प्रणाम !
नहीं भूलने देते तुम -
क्षण भर भी,
ठाकुरजी का नाम !!


जगत के कष्ट
तुम्हें प्रणाम !

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मंगलवार, मार्च 20, 2012

प्रतिक्रिया घटायें।

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आदमी ने दुनिया भर की चीजें बना ली, बस आदमी को आदमी बनाना बाकी रह गया।

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अब प्रश्नों को परे करो, द्वन्द को हटाओ दूर।

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दुःख: और सुख आसमान से नहीं टपकते, इनकी तो यहीं एडवांस बुकिंग होती है। सुख की एडवांस बुकिंग के लिए सत्कर्मों का भुगतान करना होता है, दुःख: की एडवांस बुकिंग के लिए बुरे कर्मों का। खिड़कियाँ दोनों खुली है , निर्णय स्वयं के हाथ में है।

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बुधवार, मार्च 07, 2012

यह मन कितना वेगवान हैं। कितना चंचल हैं। कितना हठी है। कितना अभिमानी है। आकाश की असीम ऊंचाई से पाताल की अटल गहराई तक मन निर्विघ्न, निर्भय विचरण करता है। इसमें सूर्य का प्रचंड प्रकाश भी है तो अमावस्या का घोर तिमिर भी। यह शत्रु हो जाये तो परम दुर्भाग्य। यह मित्र हो जाये तो परम सौभाग्य। यह उन्मत्त हो जाये तो मतवाले हाथियों के झुंड भी सर झुका एक ओर हट जाये। यह शांत हो तो 'बुतों' में हलचल दिखे। ऐसा मेरा, सबका मन शुभ संकल्प से युक्त हो।
- भौतिकता की चाह का तूफान आदमी के सुख चैन को न जाने कहाँ उड़ा ले गया !
जिन्दगी के धोबी घाट पर समय नाम का धोबी मानवरूपी कपड़ों को पटक पटक कर धो रहा है।
कपड़ों ने मैल को बहुत जकड रखा है। पर वह भी पक्का धोबी है। आखिर कपडे कितनी देर अपनी चला पाएंगे। समय उन्हें उज्ज्वल कर ही देगा। बना ही देगा निर्मल ! कूट कूट कर!

मंगलवार, मार्च 06, 2012

श्री रामकृष्ण - ( राम से)- बाजा नहीं है। अगर अच्छा बाजा रहा तो गाना खूब जमता है। ( हँसकर) बलराम का बंदोबस्त , जानते हो ? ब्राह्मण की गौ ! - जो खाय तो कम, पर दूध दे सेरों !' ( सब हँसते हैं।)

-श्रीरामकृष्ण वचनामृत से
श्री रामकृष्ण - ".......... शास्त्रों में उनके पाने के उपायों की ही बातें मिलेगी। परन्तु ख़बरें लेकर काम करना चाहिए। तभी तो वस्तु लाभ होगा। केवल पांडित्य से क्या होगा ? बहुत से श्लोक और बहुत से शास्त्र पंडितों के समझे हुए हो सकते हैं, परन्तु संसार पर जिसकी आसक्ति है, मन ही मन कामिनी और कंचन पर जिसका प्यार है, शास्त्रों पर उसकी धारणा नहीं हुई- उसका पढना व्यर्थ है। पंचांग में लिखा है कि इस साल वर्षा खूब होगी, परन्तु पंचांग को दाबने पर एक बूँद भी पानी नहीं निकलता, भला एक बूँद भी तो गिरता, परन्तु उतना भी नहीं गिरता ! " ( सब हँसते हैं।)


- श्रीरामकृष्ण वचनामृत से
श्री रामकृष्ण (हँसकर) - केशव सेन ने एक दिन लेक्चर दिया। कहा, ' हे ईश्वर ऐसा करो कि हम लोग भक्ति नदी में गोते लगा सकें और गोते लगा कर सच्चिदानन्दसागर में पहुँच जाएँ।' स्त्रियाँ सब 'चिक' की ओट में बैठी थी। मैंने केशव से कहा, ' एक ही साथ सब आदमियों के गोते लगाने से कैसे होगा ? तो इन लोगों ( स्त्रियों) की दशा क्या होगी ? कभी कभी किनारे लग जाया करना। फिर गोते लगाना, फिर ऊपर आना।' केशव और दूसरे लोग हँसने लगे।

-श्रीरामकृष्ण वचनामृत से
श्री रामकृष्ण - ".........मैंने सब तरह किया है - सब शास्त्रों को मानता हूँ। शाक्तों को भी मानता हूँ और वैष्णवों को भी मानता हूँ। उधर वेदान्त्वादियों को भी मानता हूँ। यहाँ इसीलिए सब मतों के आदमी आया करते हैं। और सब यहीं सोचते हैं की ये हमारे मत के आदमी हैं। आजकल के ब्रह्म समाज वालों को भी मानता हूँ।

एक आदमी के पास एक , रंग का गमला था। उस गमले में एक बड़े आश्चर्य का गुण ये था कि जिस किसी रंग में वह कपडे रंगना चाहता था , उसी रंग में कपडे रंग जाते थे। कोई कहता पीला तो वह उसमे डूबा कर देता - यह लो पीला; कोई कहता नीला तो वह उसमे डूबा कर देता , यह लो नीला।

परन्तु किसी होशियार आदमी ने कहा, तुमने इसमें जो रंग घोला है वहीँ रंग मुझे दो।

( श्री रामकृष्ण और सब हँसते हैं।)

- श्रीरामकृष्ण वचनामृत से

सोमवार, फ़रवरी 20, 2012

गिरीश - नरेन्द्र कहता है, उनकी संपूर्ण धारणा क्या कभी हो सकती है ? वे अनंत हैं।
श्री रामकृष्ण ( गिरीश से) - ईश्वर की सब धारणा कर भी कौन सकता है ? न उनका कोई बड़ा अंश, न कोई छोटा अंश संपूर्ण धारणा में लाया जा सकता है; और संपूर्ण धारणा करने की जरुरत ही क्या है ? उन्हें प्रत्यक्ष कर लेने ही से काम बन गया। उनके अवतार को देखने से ही उनको देखना हो गया। अगर कोई गंगाजी के पास जाकर गंगा जल का स्पर्श करता है तो वह कहता है, मैं गंगाजी के दर्शन कर आया। उसे हरिद्वार से गंगासागर तक की गंगा का स्पर्श नहीं करना पड़ता। ( सब हँसते हैं।)

- श्रीरामकृष्ण वचनामृत से
पल्टू और विनोद सामने बैठे हुए हैं।

श्री रामकृष्ण (पल्टू से, सहास्य ) - तू ने अपने बाप से क्या कहा ? ( मास्टर से) सुना, इसने यहाँ आने की बात पर अपने बाप को भी जवाब दे दिया। ( पल्टू से) क्यों रे, क्या कहा ?

पल्टू - मैंने कहा, हाँ, मैं उनके पास जाया करता हूँ, तो यह कौनसा बुरा काम है ? ( श्री रामकृष्ण और मास्टर हँसे।) अगर जरुरत होगी तो और भी इसी तरह की सुनाऊंगा।

श्री रामकृष्ण ( सहास्य, मास्टर से) - नहीं, क्यों जी, इतनी भी कहीं, बढा-चढी होती है ?

मास्टर - जी नहीं, इतनी बढा -चढी अच्छी नहीं।

( श्री रामकृष्ण हँसतेहैं।)

- श्रीरामकृष्ण वचनामृत से

शुक्रवार, फ़रवरी 17, 2012

श्रीरामकृष्ण - " केशव एक दिन आया था। रात के 10 बजे तक रहा। प्रताप तथा अन्य किसी ने कहा, ' आज यहीं रहेंगे।' हम सब लोग वट-वृक्ष के नीचे ( पंचवटी में) बैठे थे। केशव ने कहा, ' नहीं, काम है, जाना होगा।'
उस समय मैंने हँसकर कहा , मछली की टोकरी की गंध न होने पर क्या नींद नहीं आयेगी? एक मछली बेचने वाली एक महिला के घर अतिथि बनी थी। मछली बेचकर आ रही थी , साथ में मछली की टोकरी थी। उसे फूल वाले कमरे में सोने को दिया गया। फूलों की गंध से उसे अधिक रात तक नींद नहीं आयी। घरवाली ने उसकी यह दशा देखकर कहा ,' क्यों , तुम छटपटा क्यों रही हो ? ' उसने कहा, ' कौन जाने भाई, इन फूलों की गंध से ही नींद नहीं आ रही है। मेरी मछली की टोकरी जरा ला दो , संभव है नींद आ जाये।' अंत में मछली की टोकरी लायी । उस पर जल छिड़क कर नाक के पास रख ली। फिर खर्राटे के साथ सो गयी ! "
" कहानी सुन कर केशव के दल वाले जोर से हँसने लगे।"

- श्रीरामकृष्ण वचनामृत से

बुधवार, फ़रवरी 08, 2012



यदु बाबु कह रहे हैं, पधारिये , पधारिये। आपस में कुशल प्रश्न के बाद श्रीरामकृष्ण बातचीत कर रहे हैं।

श्री रामकृष्ण ( हँसकर) - तुम इतने चापलूसों को क्यों रखते हो ?

यदु ( हँसते हुए) - इसलिए कि आप उनका उध्दार करें। ( सभी हँसने लगे।)

श्रीरामकृष्ण - चापलूस लोग समझते हैं की बाबू उन्हें खुले हाथ धन देंगे; परन्तु बाबू से धन निकालना बड़ा कठिन काम है । एक सियार एक बैल को देख उसका फिर साथ न छोड़े। बैल चरता फिरता है, सियार भी साथ साथ है। सियार ने समझा कि बैल का जो अंडकोष लटक रहा है, वह कभी न कभी गिरेगा और वह उसे खायेगा! बैल कभी सोता है तो वह भी उसके पास ही लेटकर सो जाता है और फिर जब बैल उठकर घूम-फिर कर चरता है तो वह भी साथ-साथ रहता है। कितने ही दिन इस प्रकार बीते, परन्तु वह कोष नहीं गिरा, तब सियार निराश होकर चला गया ! ( सभी हँसने लगे ।) इन चापलूसों की ऐसी ही दशा है !

- श्रीरामकृष्ण वचनामृत से

मंगलवार, फ़रवरी 07, 2012

....इसी समय गेरुए वस्त्र पहने हुए एक अपरिचित बंगाली सज्जन आ पहुंचे। भक्तों के बीच में बैठ गए।

धीरे धीरे श्रीरामकृष्ण की समाधि छूटने लगी। भाव में आप ही आप बातचीत कर रहे हैं।

श्रीरामकृष्ण (गेरुआ देखकर ) - " यह गेरुआ क्यों ? क्या कुछ लपेटने से ही हो गया ? ( हँसते हैं।) किसी ने कहा था - ' चंडी छोड़कर अब ढोल बजाता हूँ। 'पहले चंडी के गीत गाता था, फिर ढोल बजाने लगा। ( सब हँसते हैं।)


- श्रीरामकृष्ण वचनामृत से

सोमवार, फ़रवरी 06, 2012

श्रीरामकृष्ण - मन से सम्पूर्ण त्याग के हुए बिना ईश्वर नहीं मिलते। साधू संचय नहीं कर सकता। कहते हैं, पक्षी और दरवेश , ये दोनों संचय नहीं करते। यहाँ का तो भाव यह है कि हाथ में मिट्टी लगाने के लिए मैं मिट्टी भी नहीं ले जा सकता। पानदान में पान भी नहीं ले जा सकता। हृदय जब मुझे बड़ी तकलीफ दे रहा था, तब मेरी इच्छा हुई, यहाँ से काशी चला जाऊं। सोचा, कपडे तो लूँगा, परन्तु रूपये कैसे लूँगा ? इसीलिए फिर काशी जाना भी नहीं हुआ। ( सब हँसते हैं।)

- श्रीरामकृष्ण वचनामृत से

गुरुवार, फ़रवरी 02, 2012

श्री रामकृष्ण - " ...........मेरी अब वह अवस्था नहीं है। हनुमान ने कहा था - वार, तिथि, नक्षत्र, इतना सब मैं नहीं जानता, मैं तो बस श्रीरामचंद्र जी की चिंता किया करता हूँ। ....राम और लक्ष्मण जब पम्पा सरोवर पर गए, तब लक्ष्मण ने देखा, एक कौआ व्याकुल होकर बार बार पानी पीने के लिए जा रहा था, परन्तु पीता न था। राम से पूछने पर उन्होंने कहा, ' भाई, यह कौआ परम भक्त है। दिन रात यह राम नाम जप रहा है। इधर प्यास के मारे छाती फटी जा रही है, परन्तु सोचता है, पानी पीने लगूंगा तो जप छूट जायेगा।' मैंने पूर्णिमा के दिन हलधारी से पूछा, ' दादा, आज क्या अमावस है ? ' ( सब हंसते हैं।)


(सहास्य) हाँ, यह सत्य है। ज्ञानी पुरुष की पहचान यह है कि पूर्णिमा और अमावस में भेद नहीं पाता। परन्तु हलधारी को इस विषय में कौन समझा सकता था, वो कहता, देखो, ये पूर्णिमा और अमावस में भेद नहीं कर सकते और लोग इनको इतना मानते हैं !


- श्रीरामकृष्ण वचनामृत

सोमवार, जनवरी 30, 2012

श्री रामकृष्ण - " देखो विजय, साधू के साथ अगर बोरिया-बिस्तर रहे, कपडे की पंद्रह गिरह वाली गठरी रहे, तो उस पर विश्वास न करना। मैंने बटतल्ले में ऐसे साधू देखे थे। दो-तीन बैठे हुए थे। कोई दाल के कंकड़ चुन रहा था, कोई कपडा सी रहा था और कोई बड़े आदमी के घर के भंडारे की गप्प लड़ा रहा था, ' अरे उस बाबू ने लाखों रूपये खर्च किये, साधुओ को खूब खिलाया - पुड़ी, जलेबी, पेडा , बर्फी , मालपुआ , बहुत सी चीजें तैयार करायी।' "

( सब हँसते हैं।)

-श्रीरामकृष्ण वचनामृत से

शुक्रवार, जनवरी 27, 2012

श्री रामकृष्ण - ( मास्टर आदि भक्तों के प्रति ) - विद्वेष भाव अच्छा नहीं - शाक्त , वैष्णव, वेदान्ती ये सब झगडा करते हैं, यह ठीक नहीं। पद्मलोचन बर्दवान के सभा पंडित थे। सभा में विचार हो रहा था - ' शिव बड़े हैं या ब्रह्मा ', पद्मलोचन ने बहुत सुन्दर बात कही थी- " मैं नहीं जानता, मुझसे न शिव का परिचय है, और न ब्रह्मा का !"


( सभी हँसने लगे।)

- श्रीरामकृष्ण वचनामृत से

श्री रामकृष्ण - " .... सुना है कि श्रीमद्भाग्वद जैसे ग्रन्थ में भी इस तरह की बातें है। 'केशव का मंत्र बिना लिए भव सागर पार जाना कुत्ते की पूंछ पकड़ कर महासमुद्र पार करना है।' भिन्न भिन्न मत वालों ने अपने ही मत को प्रधान बतलाया है।


" शाक्त भी वैष्णवों को छोटा सिद्ध करने कि चेष्टा करते हैं। श्री कृष्ण भव नदी के नाविक है, पार कर देते हैं, इस पर शाक्त लोग कहते हैं - 'हाँ, यह बिलकुल ठीक है, क्योंकि हमारी माँ राजराजेश्वरी है, भला वे कभी खुद आकर पार कर सकती है " - कृष्ण को पार करने के लिए नौकर रख लिया है। '


( सब हंसते हैं।)

- श्रीरामकृष्ण वचनामृत से

श्री रामकृष्ण - " क्या तुम्हारा विवाह हो गया है ? कोई बाल बच्चे हैं

विद्या ( नाटक कंपनी में काम करने वाला नट) - जी, एक लड़की का देहान्त हो गया है, फिर एक संतान हुई है।

श्री रामकृष्ण - इसी बीच में हुआ और मर भी गया। तुम्हारी यह कम उम्र ! कहते हैं - ' संध्या के समय पति मरा, कितनी रात तक रोउंगी !' ( सभी हंस पड़े।)

- श्रीरामकृष्ण वचनामृत से
श्री रामकृष्ण चैतन्य लीला देखने जायेंगे, इसी सम्बन्ध में बातचीत हो रही है।

श्री रामकृष्ण ( हंसते हुए) - "यदु ने कहा था ,' एक रूपये वाली जगह से खूब दिख पड़ता है और सस्ता भी है !' "

" एक बार हम लोगों को पेनेटी ले जाने की बात हुई थी, यदु ने हम लोगों के चढ़ने के लिए चलती नाव किराये पर लेने की बातचीत की थी !" ( सब हंसते हैं।)

" बड़ा हिसाबी है। जाने के साथ ही उसने पूछा , 'कितना किराया है ?' मैंने कहा, ' तुम्हारा न सुनना ही अच्छा है, तुम ढाई रूपये देना।' इससे चुप हो गया और वहीँ ढाई रूपये देता है। ( सब हंसते हैं।)

- श्रीरामकृष्ण वचनामृत से


श्री रामकृष्ण - " ...........जिसकी जैसी प्रवृत्ति , जिसका जैसा भाव वह उसे ही लेकर रहता है।"

" किसी धार्मिक मेले में अनेक तरह की मूर्तियाँ पाई जाती है, और वहां अनेक मतों के आदमी जाते हैं। राधा-कृष्ण, हर-पार्वती, सीता-राम, जगह जगह पर भिन्न भिन्न मूर्तियाँ रखी रहती है। और हर एक मूर्ति के पास लोगों की भीड़ होती है। जो लोग वैष्णव है उनकी अधिक संख्या राधा-कृष्ण के पास खड़ी हुई है, जो शाक्त हैं उनकी भीड़ हर-पार्वती के पास लगी है। जो राम भक्त हैं वे सीता-राम की मूर्ति के पास खड़े हुए हैं।

परन्तु जिनका मन किसी देवता की ओर नहीं है, उनकी और बात है। वेश्या अपने आशिक की झाड़ू से खबर ले रही है, ऐसी मूर्ति भी वहां बनाई जाती है। उस तरह के आदमी मुहं फैलाये हुए वहीँ मूर्ति देखते और अपने मित्रों को चिल्लाते हुए उधर ही बुलाते भी हैं, कहते हैं, ' अरे वह सब क्या खाक देखते हो ? इधर आओ जरा, यहाँ तो देखो !' "

सब हंस रहे हैं, गोस्वामी प्रणाम करके बिदा हुए।


- श्रीरामकृष्ण वचनामृत से

बुधवार, जनवरी 25, 2012

श्री 'म' अर्थात मास्टर महाशय का वह कमरा जिसमे उन्होंने अपनी डायरी से "रामकृष्ण वचनामृत" कॉपी किया।

Photo by : Swami Sharan Verma
इस संसार में प्राप्ति क्या है ? - गुणीजनों का संग।

दुःखकर क्या है ? - मूर्खों की संगति।

हानि क्या है ? - समय चूक जाना।

निपुणता क्या है ? - धर्म तत्त्व में अभिरुचि ।

सच्चा वीर कौन है ? - जिसने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया है।

प्रियतमा कौन है ? - अनुकूल आचरण करने वाली।

धन क्या है ? - विद्या।

सुख क्या है ? - परदेश न जाना।

राज्य क्या है ? - आज्ञा पालित होना।

- भ्रृर्तहरि कृत नीति शतकम् 103
6.12.1994
'प्यारे कंप्यूटर , मैं जानता हूँ कि तुम जटिल से जटिल , उलझी हुई विस्तृत समस्याओं के समाधान में माहिर हो, पर ओ प्रिय , बुरा न मानना यदि मैं तुम्हे मानव मन से जुडी समस्याओं के बारे में नादान ही मानूं। ओ इक्कीसवी सदी में धरा पर आदमियों की तरह छा जाने वाले कंप्यूटर , तुम्हारी सर्वोत्तम किस्म भी इनके आगे तो त्राहि माम- त्राहि माम करने लगेगी। परन्तु देखो, कि इस स्थिति में भी आदमी किस जीवटता से जीवन के प्रोग्राम को आखिरी परिणाम प्रिंट-आउट ( मृत्यु) होने तक चलाये जाता है।
ये वो प्रोग्राम होते हैं जिनकी प्रोग्रामिंग प्रारब्ध व कर्म मिलकर इतनी सूक्ष्मता से करते हैं कि यदि इसे एक परमाणु माने तो तुम्हारे प्रोग्रामों को ब्रह्मांड मानना पड़ेगा !
कम्यूटर , जश्न मनाओ कि तुम्हे उन दुविधाओं से रंच मात्र भी नहीं गुजरना पड़ता जिनमे होकर जाना आदमी के लिए अपरिहार्य है। कोई दुविधा सामने आ भी गई , तो तुम साफ कह देते हो, यह मेरे बस का नहीं । पर आदमी को इतनी छूट भी कहाँ।
कंप्यूटर क्या ठाट है तुम्हारे। तुमको सामाजिक बन्धनों कि तो कल्पना भी नहीं। और भले ही तुम पांचवी पीढ़ी के हो, पर तुम्हारे यहाँ पीढ़ियों में टकराव कहाँ देखने को मिलता है।
परन्तु फिर भी कंप्यूटर मुझे तुमसे सहानुभूति है। क्योंकि मैं देखता हूँ कि इस जीवन को जो भले ही कष्टों से परिपूर्ण है, बाधाओं से अटा पड़ा है, थोड़े सुखों और ज्यादा दुखों: का सागर है, पर देवता भी जिसके लिए तरसते है; तुम क्षण भर भी महसूस नहीं कर पाते। इसलिए, प्रिय कंप्यूटर, मुझे तुमसे सहानुभूति है। '
.... संतोषी है इसलिए सुखी है। महत्त्वाकांक्षाओ को दूर से ही नमन कर लिया है।
पृथ्वी को ही मिला है , फलो - फूलो का आशीर्वाद । अन्य ग्रहों ने शायद नहीं किया, सच्चे मन से सृष्टिकर्ता को प्रणाम !